हजारीबाग सदियों से प्रकृति प्रेमियों का स्वर्ग रहा है... पर हाल क़े दिनों में मौसम क़े मिजाज़ में आये बदलाव ने मुझे अपने शहर क़े प्रति ज्यादा विचलित किया है... मुझे खूब याद है की जाड़े जी बात तो छोड़ ही दें , यहाँ तो गर्मियों क़े मौसम भी बहुत सुहाने होते थे... अब न तो वह फिजा रही न हीं वह छटा जो दूर दूर क़े लोगों को आकर्षित करती थी ... स्कुल क़े दिनों में केनरी पहाड़ी की और जाना बहुत रोमांचक होता था... अब हम अपने आने वाले पीढ़ी को वैसा रोमांच का अनुभव नहीं दे सकते ... अब तो बस यादें हीं बची है उस रोमांच की... ऊँचे ऊँचे दरख़्त और दूर तक फैले हुए जंगल की... क्योंकि उन दरख्तों की जगह तो कंक्रीट की इमारतों ने ले लिया है....
पर अभी भी हमारे शहर में धरोहरों और प्राकृत नज़रों की कमी नहीं है... अगर हम उसे बचा पाए तब !
जोहार
* आलोक
Saturday, 11 September 2010
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alok ji sahi bataya aapne. Hazaribagh ki woh khushnumna mausam ab kahaan rahaan, Pehle to thodi garmi mein hi barish ho jaati thi, ishwar jaane aage kya hoga.
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