बिरसा मुंडा हवाई अड्डे पर उतरते ही जिस ठंढी हवा ने छुआ, अहसास हुआ कि अपनी मिट्टी और हवा की बातें सिर्फ बातें ही नहीं हैं.
वाकई में यहाँ से हजारों किमी दूर बैठे सोचते हुए कभी-कभी यूँ ही अचानक कुछ जानी - पहचानी यादें घेरने लगती हैं. कुछ यादें, कुछ खुशबु, कुछ चहल - पहल, कुछ भाग दौड़, कुछ धीमापन तो कभी-कहीं थम जाना भी. यहाँ की सडकें, झील, पगडंडियाँ , नदियाँ सबकुछ तो अनूठे ही हैं - खींचते ही हैं अपनी ओर. कुछ तो कशिश है ही इस छोटे से शहर में. मगर क्या सबकुछ ऐसा ही भावनात्मक सुन्दरता से ओतप्रोत है. चर्चा करूँगा आगामी पोस्ट में भी.
(तस्वीर 'गूगल' से साभार)
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